नमस्ते दोस्तों आज की एक नए लेख में आप सभी का स्वागत कर रहे हैं-बिहार की राजधानी पटना में गंगा नदी के किनारे देश रत्न राजेंद्र प्रसाद की 243 मीटर ऊंची प्रतिमा बनेगी | गंगा के निकट बने देश रत्न राजेंद्र प्रसाद के प्रतिमा का नाम होगा- स्टैचू आफ विजडम |
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स्टैचू आफ विजडम-डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की 243 मीटर ऊंची प्रतिमा बिहार की राजधानी पटना में गंगा नदी घाट के समीप स्थापित होगी | इसके लिए नगर निगम ने राज्य सरकार के पास प्रस्ताव को भेजा है | इसके निर्माण पर 3000 करोड रुपए खर्च अनुमानित है | यह प्रतिमा गुजरात के स्टैचू ऑफ यूनिटी से ऊंची होगी |
डॉक्टर सिन्हा ने बताया कि पिछले दिनों बिहार में भाजपा अध्यक्ष सह उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने ज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के प्रथम राष्ट्रपति देश रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा बनाने की बात कही थी | इसी के तहत नगर निगम ने एक प्रस्ताव बनाया है यह प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जा रहा है | उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रतिमा “स्टैचू आफ विजडम “के लिए नगर निगम गंगा नदी के किनारे जमीन के लिए एनओसी देगा | 243 मीटर ऊंची प्रतिमा के निर्माण पर 3000 करोड रुपए अनुमानित खर्च है | उन्होंने बताया की राशि का प्रबंध राज्य सरकार को करना होगा |
डॉ राजेंद्र प्रसाद का प्रतिमा स्टैचू आफ विजडम जब बनकर तैयार होगा तो यह दुनिया का सबसे ऊंचा मूर्ति कहलाएगा | अभी वर्तमान में दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति स्टैचू ऑफ यूनिटी जो कि गुजरात के बड़ौदा शहर में बना हुआ है | सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति है |
सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति – स्टैचू ऑफ यूनिटी
स्टैचू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री तथा प्रथम गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है | जो भारतीय राज्य गुजरात में स्थित है | गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्म दिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था | यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किलोमीटर की दूरी पर साधु वेट नामक स्थान पर है | जो की नर्मदा नदी पर एक टापू है यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरूच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है |
स्टैचू ऑफ यूनिटी की ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट ) है | आधार सहित 240 मीटर है | मूर्ति का निर्माण 31 अक्टूबर 2013 को शुरू हुआ और इसका निर्माण कार्य पूर्ण 25 अक्टूबर 2018 को हुआ | 31 अक्टूबर 2018 को स्टैचू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन किया गया | यह मूर्ति सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित हैं
विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा
यह विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति है | जिसकी लंबाई 182 मीटर है | इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति चीन में स्थित स्प्रिंग टैंपल बुद्ध है | जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 153 मीटर है | प्रारंभ में इस परियोजना की कुल लागत भारत सरकार द्वारा लगभग 3000 करोड रुपए रखी गई थी | लेकिन बाद में लार्सन ऐंड टुब्रो ने अक्टूबर 2014 में सबसे कम 2989 करोड़ की बोली लगाई जिसमें आकृति निर्माण तथा रखरखाव शामिल था | निर्माण कार्य का प्रारंभ 31 अक्टूबर 2013 को प्रारंभ हुआ मूर्ति का निर्माण कार्य मध्य अक्टूबर 2018 में समाप्त हो गया | इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्म दिवस के मौके पर किया गया | इस मूर्ति के मूर्तिकार राम वन जी सुतार है |
डॉ राजेंद्र प्रसाद
डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे | वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे | और उन्होंने भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई | उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था | राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में कृषि और खाद्य मंत्री का दायित्व भी निभाया था | सम्मान से उन्हें प्राय राजेंद्र बाबू कहकर पुकारा जाता है |
डॉ राजेंद्र प्रसाद का प्रारंभिक जीवन
राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिला अब सिवान के जीरादेई नामक गांव में हुआ था | उनके पिता महादेव सहाय संस्कृति एवं फारसी के विद्वान थे | एवं उनकी माता कमलेश्वरी देवी एक धर्म परायण महिला थी | 5 वर्ष की उम्र में ही राजेंद्र बाबू ने एक मौलवी साहब से फारसी में शिक्षा शुरू किया | उसके बाद वह अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए छपरा के जिला स्कूल गए |
राजेंद्र बाबू का विवाह उस समय की परिपाटी के अनुसार बाल्य काल में ही लगभग 13 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी से हो गया | विवाह के बाद भी उन्होंने पटना की टी के घोष अकादमी से अपनी पढ़ाई जारी रखें | उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखी रहा और उससे उनके अध्ययन अथवा अन्य कार्यों में कोई रुकावट नहीं पड़ी |
1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया | उनकी प्रतिभा ने गोपाल कृष्ण गोखले तथा बिहार विभूति अनुग्रह नारायण से जैसे विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया | 1915 में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्नातक की परीक्षा पास की और बाद में ला के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की राजेंद्र बाबू कानून की अपनी पढ़ाई का अभ्यास भागलपुर, बिहार में किया करते थे |
डॉ राजेंद्र प्रसाद का स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान किए गए कार्य
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका पर्दापन वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते ही हो गया था | चंपारण में गांधी जी ने एक तत्व अन्वेषण समूह भेजे जाते समय उनसे अपने स्वयंसेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था | राजेंद्र बाबू ,महात्मा गांधी के निष्ठा समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए और 1928 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पद त्याग कर दिया | गांधी जी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी ,तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद जो एक अत्यंत मेघावी छात्र था ,उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटकर बिहार विद्यापीठ में दाखिला करवाया था |
1914 में बिहार और बंगाल में आई बाढ़ में उन्होंने काफी बढ़ चढ़कर सेवा कार्य किया था | बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेंद्र बाबू जेल में थे | जेल से 2 वर्ष में छूटने के पश्चात हुए भूकंप पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन मय से जुट गए और उन्होंने वायसराय के जुटाए गए धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया |सिंध और क्केवेटा भूकंप के समय भी उन्होंने कई राहत शिविरों का इंतजाम अपने हाथों में ले लिया था |
1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार उन्होंने एक बार 1939 में संभाला था | भारत के स्वतंत्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखल अंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहे | हिंदू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कर रुखअपनाया था | राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसी दृष्ट दांत छोड़ें जो बाद में उनके परिवर्तियों के लिए उदाहरण बन गए |
भारतीय संविधान निर्माण में राजेंद्र प्रसाद का योगदान
भारत के संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन 1946 में किया गया था | जिसके प्रथम स्थाई अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को चुना गया | डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में ही पूरे संविधान का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ | और बाद में संविधान सभा के सदस्यों के द्वारा ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को चुना गया |,
राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न से सम्मानित किया गया
सन 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें भारत रत्न के सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया यह उसे भूमिपुत्र के लिए कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृ भूमि की सेवा की थी | भारत रत्न प्राप्त करने वाले यह भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे | राष्ट्रपति के रूप में इन्होंने दो कार्यकाल पूरा किया |
भारत रत्न राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु
अपने जीवन की आखिरी महीने बीतने के लिए उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुनाव यहां पर 28 फरवरी 1963 ईस्वी में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई यह कहानी थी श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परंपरा की चट्टानों सदस्य आदर्श कि उनके समाधि स्थल का नाम महापारायण घाट है |
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